मंत्रेश्वर झा



मंत्रेश्वर झा 1944-
जन्म जनवरी १९४४ .ग्राम-लालगंज, जिला-मधुबनीमे। प्रकाशित कृति: खाधि, अन्चिनहार गाम, बहसल रातिक इजोत (कविता संग्रह); एक बटे दू (कथा संग्रह), ओझा लेखे गाम बताह (ललित निबन्ध) मैथिली कथा संग्रहक हिन्दी अनुवाद कुंडलीनामसँ प्रकाशित। दि फूल्स पैराडाइज (अंग्रेजीमे ललित निबन्ध) २००८ .-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी यात्री-चेतना पुरस्कार। २००८- मंत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा) पर साहित्य अकादमी पुरस्कार।

कविता:जुल्मी, पूजा, अन्हराक लकड़ी, छिपकली, एकटा शून्य अछि, नवका नवका सत्य

जुल्मी

दुनिया मे अहीं टा त' नहिं छी जुल्मी,
अपना पर बजरत तखन बुझवै जे की।

काल्हियो छलहुँ हमारा आ काल्हियो रहब,
बीतत वर्तमान तखन बुझबै जे की।

फूसि फासि ठूसि ठासि भरलहुँ जिनगी,
अंतकाल पछताके बुझबै जे की।

बजौलहुँ इनाम ले बदनामी खातिर,
नाम जुटत अपनो त' बुझबै जे की।

नुका नुका पर्दा मे बाँचब कते दिन,
खोलब जौं भेद तखन बुझबै जे की।

पूजा
मनुक्खक पूजा करैत करैत
जखन मनुक्ख थाकि जाइत अछि,
दुःख, दर्द, भूख, प्यास सहैत सहैत
बिसरि जाइत अछि तखन
अपन नाम, ध्यान, ज्ञान
तखन मनुक्खक आकृतिमे
बचि जाइ छै
केवल छाह आ व्यथा
छहोछीत विश्वासक कथा,
आ’ तखन ओहि विकृति आकृतिक
आडम्बरकें ओ उघारि दैत अछि
उजाड़ि दैत अछि सभटा नकाब,
सभटा आवरण,
आ’ भीतर पबैत अछि केवल
पाथर सन चुप्पी,
अपने सन आ’ अन्हार सन चुप्पी,
पूजए लगैत अछि मनुक्ख तखन
पाथर आ पहाड़कें
गाछकें कछाड़कें
आ पूजैत पूजैत
भ’ जाइत अछि
गत्रा गत्रा झमाड़ल
पाथर सन पाड़ल।
भूख तखन बजैत छै
केवल ओकर आँगसँ,
आ’ तखन ने ओ करैत
अछि पूजा,
आ ने रहैत अछि पूज्य।

अन्हराक लकड़ी
नहि किछु फुरैत अछि त’
गनू तरेगन
मुदा जाउ नहि खेत पर
कदबामे लेपा जाएत बी.ए.क डिग्री।
नहि किछु करैत छी त’
खेलाउ छकरी
लड़ाउ बकरी
मुदा चलाउ नहि करीन
चढ़ि जाएत जाँघ
भ’ जाएत फोंका,
अनेरे हैब अपस्याँत।
भुखले रहि जाउ वा
घोंटि लिअ’ भाँग
चास बिका जाए त’ बेचू घर दुआरि
मुदा कोड़ू नहि खेत तोडू़ नहि पाथर
खदान वा कारखानामे नहि करू परिश्रम
जुनि माँजू बरतन
मैल भ’ जाएत टी शर्ट
रहत की प्रेस्टीज?
पढ़ैत रहू माँगि चाँगि
नित्य अखबार केर वान्टेड कालम।
करैत रहू सप्लाइ
चढ़बैत रहू मिठाइ
आ लगबैत रहू सिफारिस
अन्हराक लकड़ी, कतहु लागिए जाए।

छिपकली
घात लगौने
ससरल जा रहल छिपकली
खण्डहर भेल देबाल पर
शान्त चित्त
साधना करैत
हम अनेरे अपस्याँत
चारू कात
तकैत रहैत छी
उकासी करैत
घात प्रतिघात सहैत
चाटि गेल
एहि देबालसँ
ओहि देबाल तक
सभटा कीड़ी मकोड़ी।
धारी लगौने जा रहल चुट्टी पिपरी, बिसपिपरी
ओहिना चल जा रहल अनवरत
एमहरसँ ओमहर
कोमहर पता नहि
की बाजि रहल चुट्टी
पता नहि
छिपकलीक ध्यान कोमहर
अपन शिकार पर टाँगल
चट केने जा रहल सभटा शिकार
कि कएने चुट्टीसँ अनाक्रमण सन्धि
भक्षक क’ रहल भक्ष्यक भोजन
मत्स्य न्याय
अबल दुबल पर सितुआक न्याय
ऊपर नील आकाशकें चाटने जा रहल
झिंुगर, दीमक, दिवार
आकाश धँसल जा रहल।
पिचकल जा रहल
पातालक माथक मुकुट बहुत।
गन्हा रहल छिपकलीक लाल जीह।
योगी अछि छिपकली,
साधु संन्यासी
केहन विलासी अछि छिपकली,
उकासी करैत रहब हम एहिना अनेरे
देवाले देवाल
लटकल जा रहल
छिपकली।

एकटा शून्य अछि
हम कोनो ऋतुक स्वागत किऐ करब--
जे बदलि जाइछ?
हम जीवनक स्वागत कोना करब--
जे बीतल जाइछ?
तखन हम कथीक स्वागत करब
की अछि जे नहि बदलैत अछि
के अछि जे नहि बदलैत अछि
नेनासँ जवान होएब स्वाभाविक प्रक्रिया थिकैक

मुदा नेनाकें जवान हेबामे,
प्रगतिवाद बुझाइत छैक।
बापकें लगैत छैक जे नेना
जवान बनि उच्छृंखल भ’ गेल अछि,
बापक दृष्टि बाप पर,
कोना बदलि जाइत छैक?
जबान भेला पर बेटीकें माइक जबानी
कमे सोहाइ छै।
बेटीक दृष्टि सेहो तहिना बदलि जाइ छै।
तखन हम कथीक स्वागत करब?
यथार्थक स्वागत तँ असम्भव अछि,
सूर्यक आँगमे जेना खाली धाह अछि,
ओकर किरणक उज्जर रंगमे
सात रंगक छाँह अछि,
चन्द्रमाक चमकी कतेक ओछाह अछि,
अनकर बलें कुदबामे कतेक व्यथा-आह अछि
गुलाबक सम्पूर्ण अस्तित्व कतेक कटाह अछि,
गंगामे डूबि मरब कतेक अधलाह अछि
उघारि क’ देखबामे
स्त्राी-पुरुष सभक देहमे कतेक अपन आ
अनकर गन्ध अछि।
कोना क’ स्वागत करब जकर संग
जकर जे जथीक आ जेहन सम्बन्ध अछि?
तखन कोन विचारक स्वागत करब?
कोन व्यवहारक स्वागत करब?
ठाम-ठामक सत्य कुठाम पड़ि जाइत अछि,
ताहि युगक सत्य अभिमान बनि जाइत अछि,
एक ठामक रक्तमे दोसर ठामक प्यास अछि,
एक लोकक शक्तिसँ दोसर लोक हतास अछि,
ओ चिकरैत छथि शान्ति-शान्ति
मुदा चिकरैत छथि
जे छथि शान्त से अशान्त भेल बोकरैत अछि
ककर छाती फाड़ि देखब जे के हम्मर छथि
हमरा अपने नहि ज्ञात अछि जे हम्मर हम ककर अछि,
ईश्वर छथि त’ कहाँ छथि से देखाउ तखन मानब,
ईश्वर नहि छथि त’ ई ज्ञान अहाँकें कोना भेल
से बुझाउ तखन जानब
भाँति-भाँतिक ईश्वरमे,
धर्म-धर्मक ईश्वरमे
के पैघ के छोट से पटाउ तखन मानब।
पीबी त’ की की पीबी की की नहि पीबी,
जीबी त’ की की जीबी की की नहि जीबी,
एकटा शून्य अछि जे केवल शून्य अछि,
अन्हार आ इजोतमे शून्य धरि शून्य अछि,
उनटा-पुनटा क’ शून्य केवल शून्य अछि
चारू भाग सुख-दुख अछि आ
फेर शून्य शून्य अछि,
तें हम शून्यमे शून्यसँ स्वागत करब शून्य केर।


नवका नवका सत्य
सत्य आ झूठमे
जखन जखन होइत अछि युद्ध
एकटा समझौता
होइत अछि आखिर,
सत्य आधा हारैत अछि,
झूठ आधा जीतैत अछि,
आ’ प्रत्येक समझौता
बनि जाइत अछि
एकटा नवका सत्य
एहिना जनमैत रहैत अछि
सत्य नवका नवका,
एहिना चलैत रहैत अछि
नवका नवका खेल,
थीसिस, एन्टीथिसिस, सिन्थेसिस।

जीवन जीबा लेल
चाही कोनो मजबूरी
ओकरा सरस बनएबा लेल
चाही कोनो सपना
कोनो भ्रान्ति।

जीवनक चक्का घुमैत छैक एहिना
कहियो ऊपर कहियो नीचाँ
कहियो गाड़ी पर नाव,
कहियो नाव पर गाड़ी।
पेटक सुख लेल करए पड़ैत छै लल्लो चप्पो
बनए पड़ै छै उल्लू लल्लू।
करए पडै़त छैक जी हुजूरी।
आत्माक सुखक लेल
ताकए पड़ै छै कोनो परमात्मा
झुकबए पड़ै छै मूड़ी
टेकए पड़ै छै माथा,
जाए पड़ै छै
शरण कोना ज्योतिपुंजक।
परमात्माक विराट रूप
देखबा लेल चाही अर्जुनक अरजल
अथवा कृष्णक सरजल दिव्य दृष्टि,
ककरो दुःख बुझबा लेल,
चाही विराट हृदय।
कखनो-कखनो त’
एना होइ छै
जे अहाँ सुतले रहि जाइत छी
आ’ ससरि जाइत अछि टेªन
अहाँक गन्तव्य स्टेशनसँ आगाँ।
आ’ कि अहाँ
पकड़ि लै छी कोनो उनटा पुनटा ट्रेन
आ’ कि बैसि जाइ छी
कोनो मालगाड़ीमे
भ’ जाइ छी माल जाल
कोनो मोटरी।
पेट आ’ परमात्मामे
मचल रहै छै अन्तद्र्वन्द्व एहिना।
सत्य
होइत रहैत अछि झूठ,
आ’ झूठ सत्य,
थीसिस एन्टीथीसिस।